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12/09/2015

व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles

व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles

किसी भी अर्थव्यवस्था में व्यापार करने की परिस्थिति अलग 2 होती है कभी तेजी और कभी मंदी का वातावरण होता है इन्ही तेजी और मंदी के चक्रीय प्रभाव से कुल रोजगार, कुल आय, कुल उत्पादन और विभिन्न कीमत स्तरों की तरंग की तरह उतार चढ़ाव आते रहते है जिनका हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव  पड़ता है परन्तु ये एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग होते है व्यापार के इन्हीं उतार चढ़ाव को अर्थव्यवस्था की मंदी और तेजी कहा जाता है जब अच्छे व्यापार के समय में - नए व्यापार आते है कीमतों में वृद्धि होती रहती है बेरोजगारी भी कम होती है बुरे व्यापार चक्र में इनकें विपरीत परिस्थिति है!

व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles
व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles


व्यापार चक्र के पुरे प्रक्रम को हम 4 भागों में विभाजित करते है –

ü  समृधि (Prosperity ) – यह व्यापार चक्र की सबसे प्रभावशाली तरंग के रूप में होती है जिसके अंतर्गत कुल रोजगार, कुल आय, कुल उत्पादन और कुल मांग सबसे ऊँचे स्तरों पर होती है कीमतें बढ़ती है परन्तु मजदूरी, ब्याज और वेतन आदि कम दर से बढ़ते है जिससे लाभ अधिक दर से बढ़ता है, जिससे शेयर और बांड की कीमतों में भी वृद्धि होती है, चारों तरफ एक आशावादी और विस्तारवादी वातावरण का निर्माण होता है और यह तब तक रहता है जब तक हम उस उच्चतम स्तर पर नहीं पहुंच जाते जिसे हम उत्कर्ष (Upswing) या शिखर (peak) या तेजी (boom) की अर्थव्यवस्था कहते है!

ü  सुस्ती (Recession) – सुस्ती का आरंभ भी तेजी के अंदर विद्यमान विरोधाभासों से होता है, जैसे – श्रम और कच्चे माल की समस्या, पूंजी की कीमत और बढ़ती आय – कीमत स्तर – लाभ स्तरों में विरोधाभास ! इसके अंतर्गत विस्तार वादी अवस्था कमजोर हो जाती है स्टॉक बाजार, बैंकिग प्रणाली और कीमतों के स्तरों में विरोधाभास के कारण गिरना आरम्भ होती है यह अपने फ़लने के तरीके के कारण तेज या मंदी हो सकती है परन्तु इसके आरम्भ होने पर यह स्वंय ही फैलती रहती है और अपना दायरा बढ़ाती रहती है

ü  मंदी (Depression) – मंदी के अंतर्गत हमारी सभी आर्थिक कार्य-कलाप कमजोर पड़ जाते है हमारे उत्पादन और कीमत स्तर, आय और रोजगार तथा मांग, बिलकुल निचले स्तरों पर होते है, इसके साथ – 2 जमा और ब्याज दरों के निचले स्तरों पर होने के कारण साख का निर्माण नहीं हो पाता! किसी भी प्रकार का नया निर्माण ( उपभोग या पूँजी ) नहीं हो पाता है! अर्थव्यवस्था इस मंदी या गर्त में कितने समय रहती है यह उन विस्तारवादी शक्तियों पर निर्भर करता है जो बिलकुल कमजोर पड़ चुकी है


ü  पुनरुथान ( Recovery ) – जब अर्थव्यवस्था पर मंदी हावी रहती है तो विस्तारवादी शक्तियां पुनरुथान या निचले मोड़ से या आरंभिक शक्तियों के रूप में अपना कार्य शरू करती है ये शक्तियां अंतर्जात या बाह्य हो सकती है, इस अवस्था में जब खराब हो चुकी वस्तुओं को बदलने के लिए स्थापन्न मांग उत्पन्न होती है जिसे हम एक आरंभिक बिंदु मान लेते है जिससे आरंभिक मांग – निवेश – रोजगार की मांग बढ़ती है और इसप्रकार एक व्यापार चक्र पूरा होता है !