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27/11/2015

हमारी अपराधिक न्याय प्रणाली न्याय प्रणाली

हमारी अपराधिक न्याय प्रणाली


हम सभी जानते है की कोंई भी अपराध होने पर पुलिस कई लोगों को गिरफ्तार करती है तो ऐसा लगता है की मानों पुलिस ही न्याय करती है परन्तु ऐसा नहीं है गिरफ्तार होने के बाद अदालत तय करती है की आरोपी दोषी है की नहीं ! निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार भी सभी नागरिकों को होता है!



हमारी न्याय प्रणाली
हमारी न्याय प्रणाली


ü  पुलिस की भूमिका – अपराध की जाँच में पुलिस एक महत्वपूर्ण अंग होती है किसी भी शिकायत की जाँच करना – गवाहों के बयान – सबूत इकट्ठा करना और फिर अदालत में आरोपपत्र/चार्जशीट दाखिल करना! पुलिस हमेशा से ही कानून के अंदर काम करती है और गिरफ्तारी, हिरासत और पूछताछ के लिए सर्वोच्च न्यायालय के नियमों का पालन करती है संविधान में यह जानने का हक है की -

·   गिरफ्तारी का कारण क्या है
·   गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना
·   गिरफ्तारी के बाद दिया गया बयान सबूत नहीं हो सकता
·   गिरफ्तारी पर यातना/दुर्व्यवहार से बचने का अधिकार
·   किसी महिला या बच्चे (15 साल से कम) को केवल सवाल पूछने के लिए नहीं लाया जा सकता


ü  सरकारी वकील की भूमिका – किसी भी अपराध को केवल पीड़ित के विरुद्ध नहीं बल्कि पुरे समाज के विरुद्ध माना जाता है और समाज में शांति हो यह राज्य का काम होता है इस लिए राज्य सरकारी वकील उपलब्ध करता है ताकि सभी सबूत और गवाह सही से पेश किए जा सकें और न्यायालय सही फैसला दे सकें !


ü  न्यायाधीश की भूमिका – न्यायाधीश की भूमिका निष्पक्ष होती है और वह दोनों तरफ के बयान और दलीलें सुनने के बाद ही फैसला करता है की आरोपी दोषी है या नहीं ! निष्पक्ष सुनवाई से अभिप्राय सभी को अपना पक्ष रखने का पूरा – 2 समय दिया जा सकें और सभी सबूतों के आधार पर सही फैसला लेना ताकि न्याय हो!


न्यायपालिका हमारी न्यायपालिका हमारी अदालतें

न्यायपालिका हमारी न्यायपालिका हमारी अदालतें

न्यायपालिका एक प्रकार की व्यवस्था होती है जो सभी के लिए समान कानून लागू करने में अहम भूमिका अदा करती है न्यायपालिका भारतीय संविधान या लोकतंत्र की व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका अदा करता है! न्याय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बहुत सारी अदालतें होती है जहाँ पर नागरिक न्याय पाने के लिए जा सकता है! न्यायपालिका का स्वतंत्र होना ही इसके महत्व को बताता है अर्थात् हमारे देश में एक स्वतंत्र न्याय व्यवस्था है! न्यायपालिका के कामों कों निम्न भागों में बाँटा जा सकता है जैसे –

 हमारी न्यायपालिका
 हमारी न्यायपालिका


·  विवादों का हल – देश के नागरिकों और विभिन्न राज्यों की सरकारों या केंद्र सरकार के विवादों का हल करना !
·  न्यायिक समीक्षा – संविधान की व्याख्या का मुख्य अधिकार न्यायपालिका के पास है यदि न्याय पालिका को लगता है की संसद द्वारा बनाया गया कानून संविधान का उल्लंघन है तो न्यायपालिका उस कानून को रद्द क्र सकती है!
·   कानून की रक्षा करना और नागरिकों के मोलिक अधिकारों की रक्षा करना

स्वतंत्र न्यायपालिका – किसी भी देश में न्याय व्यवस्था का स्वतंत्र होना अति आवश्यक होता है एक स्वतंत्र न्याय पालिका ही देश में समान कानून व्यवस्था और सभी के लिए समान न्याय की व्यवस्था क्र सकता है! उदाहरण के लिए यदि हम यह मान लेते है की आप की जमीन पर कोंई व्यक्ति कब्ज़ा कर लेता है और उसी का जानकर यदि न्याय करने वाला है तो वह अपने जानकर का ही बचाव करेगा तथा उसका निर्णय आप के विरोध में होगा ! परन्तु यह सही न्याय नहीं है इसीलिए न्याय व्यवस्था का स्वतंत्र होना अति आवश्यक है ताकि सभी के लिए समान न्याय की व्यवस्था की जा सकें और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जा सकें!

भारत में अदालतों की ढ़ाचा – हमारे देश में अदालतें तीन स्तरों पर काम करती है जिला अदालतें जो निचलें स्तरों पर काम करती है और प्रत्येक जिले के साथ होती है दूसरा स्तर – प्रत्येक राज्य कई जिलों में बट्टा होता है इसीलिए प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होता है जो राज्य स्तर पर सबसे उच्च होता है तीसरा स्तर – इन सभी उच्च न्यायालयों के उपर एक सर्वोच्च न्यायालय होता है यह देश की सबसे बड़ी अदालत होती है और इसका फसला सभी अदालते पर समान रूप से लागू होता है यह दिल्ली में स्थित है और मुख्य न्यायाधीश इसका मुखिया होता है! हमारी सभी अदालतें एक दूसरे से जुड़ी हुई है और कोंई भी नागरिक यदि निचली अदालत के फ़ैसले से सहमत नहीं है वह उच्च अदालत में अपील कर सकता है सभी व्यक्ति समान रूप से न्यायालय की शरण में जा सकते है!  

                                                                                

24/11/2015

हमारा कानून कानून की समझ

हमारा कानून या कानून की समझ


स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहें सभी राष्ट्रवादी लोग इस बात पर एक मत थे की स्वतंत्रता के पश्चात पुरे देश में एक समान कानून लागू होना चाहिए! इस लिए हमारे सविंधान में कई प्रावधान दिए गए है जिससे पुरे देश में कानून का राज स्थापित किया जा सकें!

हमारे कानून में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर जनता के साथ भेदभाव नहीं किया जाता! कानून की नजर में सभी लोग समान होते है और हमारा कानून सभी पर बराबर से लागू होता है कानून से उपर कोंई नहीं होता चाहे वह सरकार हो या साधारण नागरिक! कानून के राज में एक अपराध की सभी के समान सजा और एक निश्चित प्रकिया होती है जो सभी पर समान रूप से लागू होती है! पुराने जमाने में कानून को अलग – 2 तरह से प्रयोग किया जाता था जैसे अमीर और गरीब की सजा भी एक अपराध के लिए अलग – 2 होती थी! परन्तु अंग्रेजों के शासन में यह अंतर कम हुआ और कानून के राज की स्थापना का प्रारम्भ हुआ!


हमारा कानून
हमारा कानून


हमारे देश में कानून की स्थापना अंग्रेजों न की या राष्ट्रवादी लोगों के दबाव में, यह बहस मुद्दा हो सकता है 1870 का राजद्रोह एक्ट अंग्रेजों के मनमाने शासन का नतीजा था जिसमे आलोचना या विरोध करने पर ही जेल में डाल किया जाता था परन्तु राष्ट्रवादी लोगों ने समानता का संघर्ष शुरू किया जाता है

19वीं सदी के अंत तक भारत में भी कानून की समझ का विस्तार हुआ और कानूनों के जानकर लोगों ने समानता के अधिकार की मांग रखी, कानूनों के जानकर भी अपने अधिकारों की रक्षा करने लगे और न्यायालयों में भी भारतीयों की भूमिका का विस्तार हुआ!


कानून बनानाकानून बनाने का अधिकार हमारी संसद के पास है जिसमे हमारे चुने हुए प्रतिनिधि समाज की आवश्कता के अनुसार कानून का निर्माण करते है जैसे घरेलू हिंसा या दहेज उत्पीड़न आदि! और लोगों द्वारा अप्रिय कानूनों का विरोध भी किया जाता है सभा और अखबारों में लेख भी लिखे जा सकते है 

18/11/2015

हमें संसद की आवश्यकता क्यों है हमें संसद क्यों चहिए

हमें संसद की आवश्यकता क्यों है या हमें संसद क्यों चहिए ?


संसद किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग होता है, संसद के माध्यम से ही हम सहभागिता और लोकतांत्रिक सरकार में नागरिकों की सहमति को समझ सकते है और संसद के महत्व के कारण ही भारत में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण किया गया है, इसके माध्यम से ही सरकार का निर्माण और इसके काम पर अंकुश रखने ( विपक्ष के माध्यम से ) में नागरिकों की भूमिका को बताया गया है! अपनी विशेषताओं के कारण ही संसद - भारतीय संविधान और लोकतंत्र का केन्द्रीय बिंदु है

हम सब जानते है की आज़ादी से पहले (15 अगस्त 1947) हम पर अंग्रेजों का राज था और सभी निर्णय अंग्रेजों के द्वारा लिए जाते थे भारतीयों की हिस्सेदारी ना के बराबर थी स्वतंत्रता के लिए किए जा रहें आन्दोलनों ने इस स्थिति को काफी बदला और कुछ राष्ट्रवादीयों द्वारा खुले-आम अंग्रेज सरकार की आलोचना करनी शुरु कर दी और अपनी मांग रखने लगे! सन 1885 में भारतीय राष्टीय कांग्रेस ने विधायिका में निर्वाचित सदस्य, बजट पर चर्चा और प्रश्न करने का अधिकारों का मांग की! सन 1909 में बनाएं गए गवर्नमेंट आँफ़ इंडिया एक्ट में सदस्यों के निर्वाचन की व्यवस्था की गई परन्तु उन्हें भी वोट और निर्णय का अधिकार नहीं था


हमें संसद की आवश्यकता क्यों है हमें संसद क्यों चहिए
हमें संसद क्यों चहिए 


लोगों का संसद में प्रतिनिधित्व

स्वतंत्र देश के लोग अपने निर्णय अपने आप ले सकते है और वोट के माध्यम से अपनी सरकार का चुनाव कर सकते है निर्वाचित सदस्यों के समूह को संसद कहते है और निर्वाचित सदस्यों के बड़े समूह के द्वारा ही सरकार का निर्माण किया जाता है जो लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय ले सकें! निर्वाचित सदस्य विभिन्न दलों के हो सकते है! सरकार आम सहमती के आधार पर निर्णय लेती है क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण नागरिक या व्यक्ति होता है संसद का महत्व या भूमिका इस सिद्धांत पर आधरित है की जनता की निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदारी और सहमती के आधार पर शासन!

  • सरकार का चुनाव – संसद के तीन अंग होते है जैसे राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा! लोकसभा के लिए चुनाव 5 साल में एक बार कराया जाता है और निर्वाचित सदस्यों में से बहुमत वाले दल को ही सरकार बनाने का अधिकार होता है हमारी लोकसभा में 543 निर्वाचित सदस्यों और 2 मनोनीत सदस्य होता है जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते है सरकार से अलग निर्वाचित सदस्यों को विपक्ष कहा जाता है प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है और वह विभिन्न क्षेत्रो के लिए अपने मंत्री नियुक्त करता है राज्यसभा में 233 सदस्यों का चुनाव विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं सदस्यों के द्वारा किया जाता है और 12 सदस्यों का राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है

किसी कानून के लिए आवश्यक है की वो लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास हो तभी वह लागू होता है दोनों सदनों में से कोंई भी नए कानून बनाने का प्रस्ताव दे सकता है परन्तु वह दोनों सदनों में पास होना आवश्यक है


संसद सत्र के अंतर्गत - प्रश्नकाल एक महत्वपूर्ण व्यवस्था होती है जिसमें सरकार से विपक्ष विभिन्न प्रश्न करता है और सरकार उनका उत्तर देती है सरकार द्वारा किए जा रहें कार्यो की जानकारी भी विपक्ष को देती है संसद में सभी की हिस्सेदारी हो इसके लिए कुछ सीटों को SC और ST के लिए आरक्षित रखा जाता है ताकि समाज के सभी वर्गो की भूमिका को संसद के अंतर्गत सुनिश्चित किया जा सकें!  

16/11/2015

धर्मनिरपेक्षता secularism

धर्मनिरपेक्षता

धर्मनिरपेक्षता से हमारा अभिप्राय राज्य द्वारा किसी भी धर्म को प्रोत्साहन न देना है, यह राज्य का दायित्व होता है की वह सभी को समान समझें और सभी को समान अधिकार दें! लेकिन पूर्व में और वर्तमान में भी बहुत से उदहारण मिलते है जब बहुसंख्यक ने अल्पसंख्यक को दबाया और अपनी निरंकुशता से उन्हें अपने विचार व्यक्त नहीं करने दिया गया!

धर्मनिरपेक्षता secularism
धर्मनिरपेक्षता secularism

धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत अभी को अपने विचार व्यक्त करने और अपनी धार्मिक मान्यताओं तथा तोर – तरीकों को अपनाने की पूरी आजादी देता है ताकि सभी अपने रीति-रिवाजों को स्वतंत्रता के साथ मना सकें! भारतीय संविधान में सभी को आजादी से जीने और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना का पूरा अधिकार दिया गया है! भारत के संविधान के अनुसार राज्य सरकार किसी भी धर्म को अधिक बढ़ावा नहीं देगी और समाज के सभी वर्गो को उनकी मान्यताओं को मानने का पूरा अधिकार देगी,

धर्म और राज्य अलग – 2 क्यों होने चहिए

धर्म और राज्य दोनों ही अलग – 2 विषय है क्योंकि लोगों को अपनी अलग – 2 धार्मिक पहचान बनाने का पूरा अधिकार है और राज्य सरकार इसमें कोंई हस्तक्षेप नहीं करेगीं, इसका अर्थ यह है की लोग कोंई भी धर्म अपना सकतें है और एक धर्म को छोड़कर कोई दूसरा धर्म भी अपना सकता है और धर्म को अलग ढंग से व्याख्या करने की स्वतन्त्र होता है धर्मनिरपेक्षता के अंदर निम्न बातोँ का ध्यान रखना होता है जैसे –

ü  एक धर्म को मानने वाले दूसरे धर्म के साथ जोर – जबरदस्ती नहीं करेगें
ü  एक ही धर्म के अंदर भी विभिन्न मान्यताओं के लोग हो सकते है जो एक दूसरे को दबाएँ नहीं जैसे – ऊँची जीति द्वारा निचली जाति को दबाना आदि
ü  राज्य सरकार किसी भी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देगी और दूसरों की स्वंत्रता का ख्याल रखेगीं