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16/11/2015

धर्मनिरपेक्षता secularism

धर्मनिरपेक्षता

धर्मनिरपेक्षता से हमारा अभिप्राय राज्य द्वारा किसी भी धर्म को प्रोत्साहन न देना है, यह राज्य का दायित्व होता है की वह सभी को समान समझें और सभी को समान अधिकार दें! लेकिन पूर्व में और वर्तमान में भी बहुत से उदहारण मिलते है जब बहुसंख्यक ने अल्पसंख्यक को दबाया और अपनी निरंकुशता से उन्हें अपने विचार व्यक्त नहीं करने दिया गया!

धर्मनिरपेक्षता secularism
धर्मनिरपेक्षता secularism

धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत अभी को अपने विचार व्यक्त करने और अपनी धार्मिक मान्यताओं तथा तोर – तरीकों को अपनाने की पूरी आजादी देता है ताकि सभी अपने रीति-रिवाजों को स्वतंत्रता के साथ मना सकें! भारतीय संविधान में सभी को आजादी से जीने और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना का पूरा अधिकार दिया गया है! भारत के संविधान के अनुसार राज्य सरकार किसी भी धर्म को अधिक बढ़ावा नहीं देगी और समाज के सभी वर्गो को उनकी मान्यताओं को मानने का पूरा अधिकार देगी,

धर्म और राज्य अलग – 2 क्यों होने चहिए

धर्म और राज्य दोनों ही अलग – 2 विषय है क्योंकि लोगों को अपनी अलग – 2 धार्मिक पहचान बनाने का पूरा अधिकार है और राज्य सरकार इसमें कोंई हस्तक्षेप नहीं करेगीं, इसका अर्थ यह है की लोग कोंई भी धर्म अपना सकतें है और एक धर्म को छोड़कर कोई दूसरा धर्म भी अपना सकता है और धर्म को अलग ढंग से व्याख्या करने की स्वतन्त्र होता है धर्मनिरपेक्षता के अंदर निम्न बातोँ का ध्यान रखना होता है जैसे –

ü  एक धर्म को मानने वाले दूसरे धर्म के साथ जोर – जबरदस्ती नहीं करेगें
ü  एक ही धर्म के अंदर भी विभिन्न मान्यताओं के लोग हो सकते है जो एक दूसरे को दबाएँ नहीं जैसे – ऊँची जीति द्वारा निचली जाति को दबाना आदि
ü  राज्य सरकार किसी भी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देगी और दूसरों की स्वंत्रता का ख्याल रखेगीं


25/09/2015

भारतीय संविधान indian constitution

भारतीय संविधान

आज जिस आजाद संसार में हम साँस ले रहें है वहा पर कुछ समय पहले तक कुछ चुनिंदा देशों का ही शासन होता था और ये कुछ देश ही संसार पर राज करते थे और अपने द्वारा बनाए गए कानूनों के थोपते थे परन्तु आज दुनिया का सभी देश आजाद है और उनके पास उन्हीं के द्वारा बनाया गया कानून है आज दुनिया के सभी देशों का अपना संविधान है परन्तु वे लोकतांत्रिक है ये नहीं कहा जा सकता!


भारतीय संविधान indian constitution
भारतीय संविधान indian constitution

संविधान है क्या और यह किस उदेश्य (महत्व) के लिए बनाया जाता है – यह एक आदर्शो की एक सांझी सहमती होती है जो पुरे देश पर एक समान लागू होती है! ये वे आदर्शो होते है जिस प्रकार का देश की जनता अपने देश को बनाना चाहतीं है यह समाज के ताने-बाने या ढ़ाचे का मूल स्वरूप होता है किसी भी देश के अंदर विभिन्न समुदाय – विभिन्न धर्म – विभिन्न भाषा हो सकती है या होती है जिनमें कुछ समानता और कुछ असमानता होती है इसीलिए संविधान एक इस प्रकार की विधि होती है जो सभी को एक समान चलने को प्रेरित करती है!

लोकतांत्रिक व्यवस्था में हम अपने नेता को खुद या स्वयं चुनते है ताकि वे जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से पूरा कर सके! फिर भी कुछ लोग इन शक्तियों का गलत प्रयोग करते है जिससे समाज को काफी नुकसान होता है परन्तु हमारे संविधान में इनसे निपटने के लिए भी व्यवस्था की गई है जिन्हें हम मोलिक अधिकार कहते है समानता का अधिकार भी इसी के अंदर आता है जिसमेँ जन्म – जाति – धर्म – भाषा आदि के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता है बहुसंख्यक द्वारा अल्पसंख्यक को दबानें की स्थिति में भी संविधान इस निरंकुशता का समाधान करता है

संविधान हमे इस प्रकार के निर्णय लेने से रोकता है जिसके कारण संविधान के आधार-भूत ढ़ाचे को नुकसान होता हो, जो कई प्रकार की आछी या घटियाँ किस्म की राजनीति के कारण होता है


संविधान के लक्षण – 

जिस देश में विभिन्न समुदाय – विभिन्न धर्म – विभिन्न भाषा आदि हो वहा पर कोंई एक आदमी सभी के लिए संविधान का निर्माण नहीं कर सकता! 1946 में लगभग 250 – 300 लोगों से मिलकर एक संविधान सभा का गठन किया गया जिन्होंने आगे चलकर हमारे संविधान का निर्माण किया!

ü  संघवाद – इस से अभी-प्राय देश में एक से ज्यादा स्तरों पर सरकारों का होना है ताकि कुछ लोग पुरे देश के बारे में फैसला न ले सकें, इसीलिए केंद्र सरकार – राज्य सरकार – पंचायत राज की व्यवस्था की गई है सभी को अलग – 2 अधिकार और दायित्व दिए गए है सभी की सहमती से फैसला लिया जा सकें

ü  संसदीय प्रणाली – इस के अंतर्गत लोग अपनी वोट देकर सरकार का चयन करते है और सभी को समान रूप से वोट देने का अधिकार है अर्थात जन्म – जाति – धर्म – भाषा आदि के आधार पर अंतर नहीं कोई भी है

ü  शक्तियों का वितरण – किसी भी शासन व्यवस्था को तीन भागों में बांटा जा सकता है जैसे – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका! संविधान में इन तीनों की शक्तियों का वितरण किया गया है ताकि भविष्य के टकराव को रोंका जा सकें! कार्यपालिका – शासन चलाना और कानूनों को लागू करना, विधायिका – लोगों द्वारा चुने प्रतिनिधि जो सरकार चलते है, न्यायपालिका – जो न्याय की व्यवस्था बिना किसी भेदभाव के समान रूप से सभी के लिए करती है!

ü  मोलिक अधिकार – ये वे अधिकार है जो जनता को राज्य या विधायिका के मन मानेपन या निरंकुशता से बचते है ये अधिकार अल्पसंख्यक के लिए भी हो सकते है या आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए भी या महिलाओं और बच्चों के लिए भी! इसमें नीति - निर्देशक तत्वों को भी जोड़ा गया है ताकि भविष्य में सामाजिक सुधारों को बढ़ाया जा सकें और मार्गदर्शक के रूप में इनका विस्तार किया जा सकें!


ü  धर्मनिरपेक्ष – किसी भी देश के संविधान का धर्मनिरपेक्ष होना अति-आवश्यक होता है अर्थात किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देगी और सभी को समानता से देखा जाएगा!

विश्व बैंक World Bank

विश्व बैंक World Bank


विश्व बैंक की स्थापना 1945 में ब्रेटन - वुड्ज समझोते के तहत की गई ताकि विश्व युद्ध के बाद खराब हुई अर्थव्यवस्थाओं को दोबारा से पटरी पर लाया जा सकें ! यह पूंजी पदार्थो और उत्पादकों पर ज्यादा काम करता है ताकि ज्यादातर देश अपने व्यापार और आधार-भूत संरचना को मजबूत बना सकें! इसे अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण तथा विकास बैंक या विश्व बैंक भी कहा जाता है!


विश्व बैंक World Bank
विश्व बैंक World Bank


World Bank – An international financial Body which provide loan for their capital development program, more than 185 countries are currently the members of this institution, mostly its run two different body for the different task like IBRD – International Bank for Reconstruction and Development, IDA – International Development Association.  



विभिन्न कार्य ( Function )

ü उत्पान और पूंजी के निवेश को आसान बनाना ताकि विभिन्न क्षेत्रों के मध्य पुनर्निर्माण तथा विकास को प्रोत्साहन किया जा सकें

ü कम विकसित देशों के उत्पादन को बढ़ावा देना और विभिन्न प्रकार के संसाधनों को प्रोत्साहन करना

ü निजी निवेश को बढ़ावा देना और विकास की भागीदारी का सहभागी बनाना

üदीर्घकालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संतुलित करना और सदस्य देशों के मध्य आपसी तालमेल को बढ़ावा देना

ü भुगतान संतुलन – काम करने का वातावरण – जीवन स्तर और अन्य परिस्थितियों को अच्छा बनाना


ü अंतर्राष्ट्रीय लोनों का देना और उनकी गारंटी देना तथा जरूरी परियोजनाओं का पहचान करके उनको पहले पूरा करवाना !

24/09/2015

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष International Monetary Fund IMF

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष  International Monetary Fund IMF


यह एक अंतर्राष्ट्रीय वितीय संस्थान है जिसकी स्थापना 1944 में  बैर्टन – वुड्ज (U S A) डील के अनुसार 44 देशों ने की थी, इसका प्रमुख उदेश्य विश्व-व्यापी मंदी को दूर करने और भविष्य में इसे रोकने के उपायों को खोजना था! विश्व-व्यापी मंदी ने पुरे विश्व के देशों के आर्थिक ढ़ाचे को काफी हद तक खत्म कर दिया था और जिसके कारण उन देशों को स्वर्ण व्यवस्था को वापस लेना पड़ा! 

प्रत्येक देश ने अपने – 2 व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधो और मूल्यह्रास का सहारा लेना पड़ता! विश्व के इन्ही वितीय उतार- चढ़ाव को दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना 1944 में की गई ताकि विश्व में व्यापार और आर्थिक वृद्धि को बढ़ाया जा सके! वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या 185 के उपर है !



अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष  International Monetary Fund IMF
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष  International Monetary Fund IMF


IMF - a international financial organization which is situated in Washington (USA) and more than 185 countries working jointly for global monetary cooperation, financial stability, support international trade, a balance growth in world economic and reduce poverty form the member countries.     

उदेश्य Objective  –

ü  अंतर्राष्ट्रीय वितीय समस्याओं के बारे में विचार करना और एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा सहयोग को बढ़ावा देना ताकि आवश्यकता के अनुसार सदस्य देशों का सहयोग किया जा सके !

ü  अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना और विश्व में संतुलित वृद्धि को बढ़ावा देना ताकि काम करने वाले लोगों के जीवन स्तर को सुधारा जा सकें !

ü  विश्व व्यापार की वृद्धि में बाधा को दूर करना और भुगतान संतुलन को बनाए रखना और उनकी समय सीमा को कम करना ताकि विभिन्न देशों के मध्य मूल्यह्रास का प्रचलन प्रारंभ न हो जाए !


19/09/2015

विनिमय दर Foreign Exchange vinimy dr vinma dr,

 विनिमय दर Foreign Exchange  


वर्तमान युग एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का युग है एक देश का व्यापार कई देशों से होता है इसीलिए विभिन्न देशों की करेंसी का एक दूसरे से सम्बंध स्थापित करना अति-आवश्यक हो जाता है जिस दर पर विभिन्न करेंसीयाँ आपस में संबंध स्थापित करती है उसे विनिमय दर कहतें है! रुपया और डालर के मध्य विनिमय दर यह बताती है की एक डालर के लिए 65.55 के लगभग खर्च करने पड़ते है! हम यह भी कह सहते है की 1 डालर के लिए हमें कम से कम 65.55 रुपया खर्च करने होगें! इस प्रकार हम रुपया = पाउंड और पाउंड = डालर या अन्य विभिन्न देशों की करेंसी का विनिमय दर भी पता लगा सकते है! यदि रुपया की कीमत गिरकर 67.25 हो जाती है तो इसे हम रुपया की कीमत में अवमूल्यन या मूल्यह्रास कहते है या ये कह सकते है की डालर के मुकाबले रूपये में गिरावट हुई है या रुपया कमजोर हो गया है



 विनिमय दर Foreign Exchange
 विनिमय दर Foreign Exchange  


विनिमय दर का निर्धारण काफी हद तक मुद्रा की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है! जो की विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करते है जैसे – बाजार, कीमतों में उतार – चढ़ाव, व्यापार की परिस्थिति आदि !


विनिमय दर को हम दो भागों में बाँट सकते है जैसे –

ü  वर्तमान विनिमय दर – वह दर जिसपर एक करेंसी का दूसरी के साथ विनिमय वर्तमान समय पर होता है इसे तत्काल (Spot) विनिमय दर भी कहते है ये सभी विनिमय तत्काल मार्किट में होता है इनकी समय सीमा दो दिनों से ज्यादा नहीं हो सकती है


ü  अग्रिम विनिमय दर – इसके अंतर्गत भविष्य की दरों को निश्चित किया जाता है जिस दर पर विभिन्न करेंसीयाँ आपस में विनिमय करेगीं! इसमें दो पार्टियाँ भविष्य की विनिमय दर दरों को निश्चित करके भुगतान का अनुबंध करती है 

राजकोषीय नीति Fiscal Policy rajkoshiy niti

राजकोषीय नीति Fiscal Policy



राजकोषीय नीति के अंतर्गत हम सरकार की आय और व्यय के द्वारा अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कार्यो का उलेख़ करते है! सरकार इसप्रकार की नीति का पालन करती है जिससे की राष्टीय आय, कुल रोजगार और कुल उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाया जा सके और नकारात्मक प्रभाव को रोका जा सके! सरकार अपने व्यय और कर नीति में परिवर्तन करके एक प्रभावशली राजकोषीय नीति का निर्माण कर सकती है


tax rate government spending
राजकोषीय नीति Fiscal Policy

In Fiscal Policy, we include the Government different actions for multiple positive out-come for total income, production or employment etc with the help of its total revenue or expenditure. In other words, Government always monitor and influence the economy by its level of expenditure and taxes ration.


राजकोषीय नीति के उदेश्य

ü  अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार को बनाए रखना

ü  अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखना

ü  कीमतों को नियन्त्रित रखना

ü  भुगतान शेष में संतुलन



राजकोषीय नीति के उपकरण –

ü  बजट नीति – सरकार अपनी बजट नीति के माध्यम से भी राजकोषीय नीति के उदेश्य को प्राप्त करने के प्रयास करती है इसको दो भागों में बाटा जा सकता है – बचत का बजट और घाटे का बजट ! इन दोनों के गुणांक प्रभाव अधिक होते है और जमीनी स्तर पर इनका अधिक प्रभाव होता है

·   बचत का बजट – जब सरकार को लगता है की अर्थव्यवस्था में स्फीतिक प्रभाव आ रहें है या आ सकते है तो सरकार बचत का बजट का प्रयोग करती है और अर्थव्यवस्था में स्फीति के प्रभाव को कम करती है ताकि कीमतों पर नियन्त्रण बना रहे! इसके अंतर्गत सरकार अपनी आय से कम खर्च करती है और अनावश्यक व्यय को भी कम करती है

·  घाटे का बजट -  जब सरकार को लगता है की अर्थव्यवस्था में अवस्फीति का प्रभाव आ रहा है या आ सकता है तो इन परिस्थितियों में सरकार घाटे का बजट का प्रयोग करती है और अपने व्ययों को आय से अधिक बढ़ा देती है और अन्य व्यय को भी बढ़ा देती है


राजकोषीय नीति Fiscal Policy rajkoshiy niti
राजकोषीय नीति Fiscal Policy


ü  क्षतिपूरक राजकोषीय नीति – इस नीति के अंतर्गत, सरकार अपने आय और व्यय तथा विभिन्न प्रकार के करों में परिवर्तन करके अर्थव्यवस्था में व्याप्त स्फीति और अवस्फीति के प्रभाव को कम करने का प्रयास करती है – जब सरकार को लगता है की अर्थव्यवस्था पर स्फीति का प्रभाव है तो सरकार अपने व्ययों में कमी और करों में वृद्धि करती है ताकि जनता के पास खर्च को कम आय बचें, - दूसरी तरफ, जब सरकार को अवस्फीति का प्रभाव अर्थव्यवस्था में दिखता है तो सरकार अपने खर्चो में वृद्धि करती है और करों में भी कमी करती है ताकि जनता के पास खर्च करने की आय अधिक रहें!

ü  स्व-निर्णयात्मक नीति -  इस नीति का प्रयोग सरकार निश्चित लक्ष्य का प्राप्त करने के लिए प्रयोग करती है इसमें सरकार अपने करों और व्ययों में अलग – 2 या एक साथ परिवर्तन करती है इसको तीन भागों में बांटा जा सकता है जैसे -

·         सरकारी व्यय में परिवर्तन – करों में परिवर्तन नहीं
·         सरकारी व्यय में परिवर्तन नहीं - करों में परिवर्तन
·         सरकारी व्यय और करों में परिवर्तन





17/09/2015

मौद्रिक नीति Monetary Policy modrik niti

मौद्रिक नीति Monetary Policy modrik niti

सभी देशों का एक केन्द्रीय बैंक होता है जो अर्थव्यवस्था के उतार – चढ़ाव को नियन्त्रण करते है! अर्थव्यवस्था के इन उतार – चढ़ाव को रोकने के लिए केन्द्रीय बैंक अनेक प्रकार के तरीकों का प्रयोग करता है! ताकि अर्थव्यवस्था में स्फीति और अवस्फीति के प्रभावों को रोका जा सके! मुद्रा की मांग और आपूर्ति को अर्थव्यवस्था ले अंतर्गत नियन्त्रण करना ही मोद्रिक नीति का मुख्य उदेश्य होता है!


मौद्रिक नीति का उदेश्य

ü  अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार हो !
ü  अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि जारी रहें !
ü  साथ – कीमतों पर नियन्त्रण हो !
ü  देश का भुगतान संतुलन बना रहें !

मोद्रिक नीति Monetary Policy
मोद्रिक नीति Monetary Policy  

मौद्रिक नीति के उपकरण

ü  बैंक दर ( Bank Rate ) – यह केन्द्रीय बैंक की विशेष ( विनिमय ) दर होती है जिसमें केन्द्रीय बैंक प्रथम श्रेणी की हुंडी और व्यापारी बैंक की सरकारों प्रतिभूतियों को बट्टा करता है जब अर्थव्यवस्था में स्फीति का प्रभाव होता है तो केन्द्रीय बैंक इस दर को बढ़ा देता है जिससे केन्द्रीय बैंक से उधार लेना महंगा हो जाता है और व्यापारी बैंक लोन की दर बढ़ा देते है और जिससे लोन लेना महंगा हो जाता और स्फीति प्रभाव कम किया जा सकता है!

यदि केन्द्रीय बैंक को लगता है की अर्थव्यवस्था पर अवस्फीति प्रभाव है तो यह बैंक दर को कम करके कर्ज को सस्ता कर देता है जिससे लोन लेना सस्ता हो जाता है और अर्थव्यवस्था पर अवस्फीति के प्रभाव को रोका जा सकता है यह एक मात्रात्मक उपाय है!

ü  खुले बाजार का प्रचलन ( Open Market Operation) – यह दर प्रतिभूतियों के क्रय – विक्रय से संबंधित है जिसमें केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों का क्रय – विक्रय करता है जब केन्द्रीय बैंक को लगता है की कीमतों में वृद्धि होने वाली है तो वह प्रतिभूतियों का विक्रय करता है जिससे व्यापारी बैंकों के रिजर्व कम हो जाते है और जिससे आगे लोन देने के लिए कम रिजर्व बचते है और कीमते कम होने लगती है!

जब केन्द्रीय बैंक को लगता है अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत है तो वह प्रतिभूतियों का क्रय करते है जिससे व्यापारिक बैंकों के पास अधिक नगदी या रिजर्व होती है और अधिक लोन दिये जा सकते है यह एक मात्रात्मक उपाय है!

ü  रिजर्व अनुपातों को बदलना ( Current Reserve Ration )  – प्रत्येक व्यापारी बैंक को अपने कुल जमा का कुछ अनुपात नगद और कुछ अनुपात केन्द्रीय बैंक के पास रखना होता है केन्द्रीय बैंक इन अनुपातों को परिवर्तन करके बाजार में नगदी की मात्रा को नियन्त्रण करता है जब कीमतों में कमी होती है तो केन्द्रीय बैंक इन अनुपातों को कम कर देता है जिससे बैंकों के पास नगदी रिजर्व बढ़ जाते है और लोन अधिक दिया जा सकता है और सुस्ती को दूर किया जा सकता है!

लेकिन जब कीमतों में वृद्धि होती है तो केन्द्रीय बैंक इन अनुपातों को अधिक कर देता है और व्यापारिक बैंकों के पास कम नगदी रिजर्व रह जाते है और लोन देने को कम किया जा सकता है!
                                                        
ü  साख नियन्त्रण ( Selective credit control ) - केन्द्रीय बैंक किसी विशेष उदेश्य की पूर्ति के लिए साख नियन्त्रण की चयनात्मक विधि का प्रयोग करता है केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था के अंदर के उतार – चढ़ाव को देखते हुए इस प्रकार के चयनात्मक साख नियन्त्रण के माध्यम से विशेष क्षेत्र को नियन्त्रण करता है जिससे सट्टा बाजार को रोका जा सकें, केन्द्रीय बैंक विशेष क्षेत्रों के लिए सीमा (margin) को बढ़ा देते है!








13/09/2015

समष्टि अर्थ-नीति Macro Economic-Policy

समष्टि अर्थ-नीति के लक्ष्य Aim of Macro Economic-Policy


समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत हम सामूहिक चरो का अध्ययन करते है जैसे कुल रोजगार, राष्टीय आय या उत्पादन, कुल निवेश और बचत, कुल मांग और आपूर्ति आदि! इन्ही सामूहिक चरों के अध्ययन के कारण हम इसे सामूहिक अर्थशास्त्र या सामूहिक तरीके से अर्थव्यवस्था का अध्ययन भी कहते है जो अर्थव्यवस्था में विभिन्न उतार – चढ़ाव का अध्ययन भी करते है 


समष्टि अर्थ-नीति Macro Economic-Policy
समष्टि अर्थ-नीति Macro Economic-Policy


समष्टि अर्थशास्त्र या समष्टि अर्थ-नीति के विभिन्न लक्ष्य या उदेश्य होते है जैसे –


ü  पूर्ण रोजगार ( full Employment ) – यह समष्टि अर्थशास्त्र या समष्टि अर्थ-नीति का एक प्रमुख उदेश्य है यह एक भविष्य के उत्पादन की हानि और गरीबी का कारण होता है क्लासिकी अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था में हमेशा ही पूर्ण रोजगार मानते है परन्तु एच्छिक या मोसमी या संरचनात्मक बेरोजगारी हो सकती है केन्जं के अनुसार, अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार से अभिप्राय – अनैच्छिक बेरोजगारी का आभाव! अर्थात हर उस इंसान को कम मिले को काम करना चाहता है परन्तु घर्षणत्मक बेरोजगारी हो सकती है यह 3 से 4% तक हो सकती है

ü  कीमत स्तर (Price Stability ) – अर्थव्यवस्था के अंदर कीमत स्तरों का स्थिर होना आवश्यक होता है कीमत स्तरों में उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता या अस्थिरता पैदा होती है जो की कुछ को लाभ और कुछ को हानि होती है इसीलिए मुद्रा के मूल्य को स्थिर रखना और चक्रीय उतार-चढ़ाव को कम करके अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाना अति आवश्यक होता है

ü  आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) -  आर्थिक वृद्धि करना किसी भी अर्थव्यवस्था का एक मुख्य उदेश्य होता है, आर्थिक वृद्धि के अंतर्गत एक लम्बी अवधि में देश की प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में बढ़ोतरी होती है वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन में होने वाली कुल वृद्धि से किसी भी देश या अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि को मापा जा सकता है,


ü  भुगतान शेष (Balance of Payment ) - भुगतान शेष में संतुलन बनाए रखना अति आवश्यक हो गया है जिस प्रकार से विश्व व्यापार में वृद्धि हुई है उस समय में भुगतान शेष बनाए रखना एक प्रमुख उदेश्य बन गया है भुगतान शेष से किसी भी देश की मुद्रा का बाह्य बहाव बढ़ता है या सोने से भुगतान करना पड़ता है जिससे देश आर्थिक रूप से कमज़ोर होता है! 

12/09/2015

व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles

व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles

किसी भी अर्थव्यवस्था में व्यापार करने की परिस्थिति अलग 2 होती है कभी तेजी और कभी मंदी का वातावरण होता है इन्ही तेजी और मंदी के चक्रीय प्रभाव से कुल रोजगार, कुल आय, कुल उत्पादन और विभिन्न कीमत स्तरों की तरंग की तरह उतार चढ़ाव आते रहते है जिनका हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव  पड़ता है परन्तु ये एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग होते है व्यापार के इन्हीं उतार चढ़ाव को अर्थव्यवस्था की मंदी और तेजी कहा जाता है जब अच्छे व्यापार के समय में - नए व्यापार आते है कीमतों में वृद्धि होती रहती है बेरोजगारी भी कम होती है बुरे व्यापार चक्र में इनकें विपरीत परिस्थिति है!

व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles
व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था Different phase of Trade-Cycles


व्यापार चक्र के पुरे प्रक्रम को हम 4 भागों में विभाजित करते है –

ü  समृधि (Prosperity ) – यह व्यापार चक्र की सबसे प्रभावशाली तरंग के रूप में होती है जिसके अंतर्गत कुल रोजगार, कुल आय, कुल उत्पादन और कुल मांग सबसे ऊँचे स्तरों पर होती है कीमतें बढ़ती है परन्तु मजदूरी, ब्याज और वेतन आदि कम दर से बढ़ते है जिससे लाभ अधिक दर से बढ़ता है, जिससे शेयर और बांड की कीमतों में भी वृद्धि होती है, चारों तरफ एक आशावादी और विस्तारवादी वातावरण का निर्माण होता है और यह तब तक रहता है जब तक हम उस उच्चतम स्तर पर नहीं पहुंच जाते जिसे हम उत्कर्ष (Upswing) या शिखर (peak) या तेजी (boom) की अर्थव्यवस्था कहते है!

ü  सुस्ती (Recession) – सुस्ती का आरंभ भी तेजी के अंदर विद्यमान विरोधाभासों से होता है, जैसे – श्रम और कच्चे माल की समस्या, पूंजी की कीमत और बढ़ती आय – कीमत स्तर – लाभ स्तरों में विरोधाभास ! इसके अंतर्गत विस्तार वादी अवस्था कमजोर हो जाती है स्टॉक बाजार, बैंकिग प्रणाली और कीमतों के स्तरों में विरोधाभास के कारण गिरना आरम्भ होती है यह अपने फ़लने के तरीके के कारण तेज या मंदी हो सकती है परन्तु इसके आरम्भ होने पर यह स्वंय ही फैलती रहती है और अपना दायरा बढ़ाती रहती है

ü  मंदी (Depression) – मंदी के अंतर्गत हमारी सभी आर्थिक कार्य-कलाप कमजोर पड़ जाते है हमारे उत्पादन और कीमत स्तर, आय और रोजगार तथा मांग, बिलकुल निचले स्तरों पर होते है, इसके साथ – 2 जमा और ब्याज दरों के निचले स्तरों पर होने के कारण साख का निर्माण नहीं हो पाता! किसी भी प्रकार का नया निर्माण ( उपभोग या पूँजी ) नहीं हो पाता है! अर्थव्यवस्था इस मंदी या गर्त में कितने समय रहती है यह उन विस्तारवादी शक्तियों पर निर्भर करता है जो बिलकुल कमजोर पड़ चुकी है


ü  पुनरुथान ( Recovery ) – जब अर्थव्यवस्था पर मंदी हावी रहती है तो विस्तारवादी शक्तियां पुनरुथान या निचले मोड़ से या आरंभिक शक्तियों के रूप में अपना कार्य शरू करती है ये शक्तियां अंतर्जात या बाह्य हो सकती है, इस अवस्था में जब खराब हो चुकी वस्तुओं को बदलने के लिए स्थापन्न मांग उत्पन्न होती है जिसे हम एक आरंभिक बिंदु मान लेते है जिससे आरंभिक मांग – निवेश – रोजगार की मांग बढ़ती है और इसप्रकार एक व्यापार चक्र पूरा होता है !