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12/09/2015

व्यापार चक्र Trade Cycles

व्यापार चक्र Trade Cycles

किसी भी अर्थव्यवस्था में व्यापार करने की परिस्थिति अलग – 2 होती है कभी तेजी और कभी मंदी का वातावरण होता है इन्ही तेजी और मंदी के चक्रीय प्रभाव से कुल रोजगार, कुल आय, कुल उत्पादन और विभिन्न कीमत स्तरों की तरंग की तरह उतार चढ़ाव आते रहते है जिनका हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव  पड़ता है परन्तु ये एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग होते है व्यापार के इन्हीं उतार चढ़ाव को अर्थव्यवस्था की मंदी और तेजी कहा जाता है जब अच्छे व्यापार के समय में - नए व्यापार आते है – कीमतों में वृद्धि होती रहती है – बेरोजगारी भी कम होती है बुरे व्यापार चक्र में इनकें विपरीत परिस्थिति है!

व्यापार चक्र Trade Cycles
व्यापार चक्र Trade Cycles


व्यापार चक्र - व्यापार चक्रों को उनकी समय सीमा के आधार पर कई भागों में बांटा जा सकता है –

ü  अल्पकालीन चक्र – इसे लघु या अल्प या किचिन चक्र भी कहते है इसकी अवधि 30 – 40 महीनें होती है जोसेफ किचिन (UK) ने इसकी खोज की और अल्प और दीर्घ व्यापार चक्र के बीच अंतर भी स्थापित किया, दीर्घ व्यापार चक्र अल्प चक्र से दो से तीन गुणा बड़ा होता है

ü  दीर्घकालीन चक्र – इससे बड़ा व्यापार चक्र भी कहते है यह विभिन्न व्यापार करने की परिस्थीतियो का उतार चढ़ाव है जो एक क्रमांक में चलती रहती है, इसे जुग्लर (फ़्रांस) चक्र भी कहते है इसकी अवधि 9 – 10 वर्ष होती है

ü  अति-दीर्घकालीन चक्र – ये व्यापार की अति दीर्घ तरंगे होती है जो लगभग 45 – 50 वर्षो के करीब होती है जो 5 से 6 जुग्लर चक्र के बराबर होते है! इन्हें कोंद्रतिफ (रुसी) चक्र भी कहते है

ü  कुजनेट्स चक्र – इन्होंने 16 से 22 वर्ष के दीर्घ - कालीन व्यापार चक्रो का उलेख़ किया है इन्हीं के कारण 8 – 12 वर्ष के व्यापार चक्र का कम महत्व कर दिया

ü  भवन संबंधी – इसके अंतर्गत भवन संबंधी चक्रो को रख जाता है जो की काफी हद तक नियमित होते है और इनकी अवधि लगभग 18 वर्ष मानी जाती है इनको वारेन और पियर्सन(US) खोजा था





10/09/2015

स्फीति का आर्थिक विकास में महत्व Inflation role in Economic Development

स्फीति का आर्थिक विकास में महत्व ( भूमिका ) Inflation role in Economic Development


स्फीति का महत्व importance of inflation 

ü  अल्पविकसित देशों में आर्थिक, सामाजिक और संरचनात्मक बाधाएं होती है इसी लिए विकास के लिए निजी निवेश नहीं आगे आता, इन्हीं बाधाओं को दूर करने और निजी निवेश को बढ़ाने के लिए सरकार को घाटे के बजट या स्फीति उपायों को अपनाया जाता है!

ü  अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढ़ाचे का आभाव होता है जैसे सड़क, रेल, बिजली, स्कूल और हस्पतालों आदि, इन सुविधाओं के आभाव में निजी निवेश कभी नहीं हो पाता, सरकार इन सभी आवश्यक सुविधाओं का निर्माण घाटे के बजट या स्फीति उपायों से ही कर सकती है!

ü  जब कोंई अर्थव्यवस्था घाटे के बजट या स्फीति उपायों को अपनाती है तो वह संसाधनो का हस्तांतरण करके स्वंय प्रयोग करती है विकास कार्यो से जब रोजगार – उत्पादन – आय में वृद्धि होती है तो समस्त उपभोग मांग में वृद्धि होती है लेकिन कमज़ोर आपूर्ति के कारण कीमतों में वृद्धि होता है इससे बचतों में भी वृद्धि होती है और यह पूजीं के निर्माण में भी सहायक हो सकती है

स्फीति और आर्थिक विकास inflation or economic development
स्फीति और आर्थिक विकास inflation or economic development



स्फीति की प्रतिकूल भूमिका Adverse role of Inflation

ü  विकास पर संकट – जब सरकार स्फीति उपायों को विकास के लिए अपनाती है तो एक समय के लिए तो यह सही है लेकिन लगातार इनके अपनाने से विकास पर संकट बन जाता है और यही स्फीति कई बार अति-स्फीति बन जाती है जो अर्थव्यवस्था और समाज, दोनों के लिए भी खतरनाक होती है क्योंकि सरकार द्वारा प्रायोजित कामों में लगे लोगों की आय बढ़ती है और उनकी उपभोग मांग में वृद्धि होती है! इस प्रकार के तरीकों से पूजीं की लागत भी बढ़ जाती है और जारी और नई  परियोजनाओं की दीर्घकालीन लागत में वृद्धि होती है!

ü  भुगतान शेष - स्फीति उपायों से अर्थव्यवस्था में आय बढ़ती है तो आयातों में वृद्धि होती है परन्तु निर्यात में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाती, जिससे भुगतान-शेष की समस्या पैदा हो जाती है!

ü  बाजार अपूर्णता – अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के बाजार पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते है सभी संसाधनों और उनकी गतिशीलता में अंतर पाया जाता है साथ ही, ऊँची मांग और निम्न आपूर्ति के कारण अति-स्फीति का खतरा पैदा हो जाता है!

ü  स्फीति बचतों को कम करती है ऊँची कीमतों के कारण लोग अपनी पुरानी बचत दरों को कायम नहीं रख पाते, स्फीति के कारण वास्तविक आय में कमी हो जाती है!

ü  निजी निवेश रोकना – प्रारंभिक स्तर पर स्फीति निजी निवेश को बढ़ाती है क्योंकि लागत की अपेक्षा लाभ अधिक तेजी से बढ़ते है परन्तु एक स्तर के बाद, कीमतों में होने वाली निरंतर वृद्धि से निजी निवेश की लागत ( पूँजी की लागत ) बढ़ जाती है और निवेश में कमी होती है!

ü  स्फीति के कारण समाज को हानि होती है क्योंकि इससे जनसाधारण को लाभ की अपेक्षा हानि अधिक होती है इससे समाज में धन के वितरण की असमानता भी बढ़ती है जो जनसाधारण की अपेक्षा उधमी के पक्ष में अधिक होता है!



09/09/2015

अवस्फीति meaning of Deflation

अवस्फीति Deflation meaning of Deflation what you know about Deflation


अवस्फीति एक ऐसा वातावरण होता है जब मुद्रा का मूल्य बढ़ रहा होता है या ये कहें की कीमते गिर रही होती है, यह एक ऐसा वातावरण होता है जो की कम होते रोजगार और आर्थिक क्रियाओं से सम्बन्ध रखता है, यह तब होता है जब मुद्रा की आपूर्ति कम होने से वस्तुओं की कीमत अधिक गिर जाती है अपेक्षा उनके उत्पादन के! अवस्फीति के दोरान, उत्पादन और रोजगार के कम होने के साथ कीमतों में भी कमी होती है!

विस्फीति में – उत्पादन और रोजगार पर कोंई प्रभाव नहीं होता, परन्तु कीमतों को जान - बुझकर घटाया जाता है

चित्र में AD – मांग और AS – पूर्ति वक्र है तथा पूर्ण रोजगार के स्तर पर OY – आय और OP – कीमत स्तर है, जब समस्त मांग में कमी होती है तो AD कम होकर AD2 पर आ जाता है और तथा नया संतुलन भी A से गिरकर B हो जाता है नई कीमतें OP2 तथा आय OY2 होगी !


अवस्फीति Deflation
अवस्फीति  Deflation



अवस्फीति के प्रभाव  Effect of Deflation -

·  निश्चित आय वर्ग को इससे लाभ होता है क्योंकि कीमतों के गिरने से मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है

·  कृषि, शेयर धारक और उधोगपतियों को इससे हानि होती है कीमतों के गिरने से - उत्पादन और फिर आय – रोजगार गिरने से – समस्त मांग गिर जाती है

·  अवस्फीति से संपति के वितरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि रोजगार और आय में कमी के कारण निम्न और मध्यम आय वर्ग को अधिक नुकसान होता है


अवस्फीति meaning of Deflation
अवस्फीति meaning of Deflation



अवस्फीति के उपाय Steps to fight Deflation

· सरकारों द्वारा किए जाने वाले काम जैसे सड़क - पुल और नदी - स्कूल आदि, इन सभी में सरकारी व्यय को बढ़ाकर समस्त मांग में वृद्धि करना!

· करों ( व्यक्तियों और कंपनी ) में कमी करना ताकि उनकी खर्च करने योग्य आय में वृद्धि हो और वे अधिक वस्तुओं और सेवाओं की समस्त मांग करे !

· अवस्फीति से लड़ने के लिए सरकार घाटे का बजट बनाए अर्थात सरकारी व्यय में वृद्धि और आय (करों में माध्यम से) में कमी करके !

· ब्याज दरों में कमी करके निवेश का वातावरण बनाए ताकि रोजगार और आय को बढ़ाया जा सके !






                                   

06/09/2015

स्फीति का प्रभाव effect of inflation

स्फीति का प्रभाव  effect of inflation on society


मुद्रा की मात्रा को अत्यधिक बढ़ाने के फलस्वरूप कीमतों में होने वाली तेज वृद्धि, यह समस्या अर्थव्यवस्था पर मोद्रिक नियन्त्रण नहीं होने पर पैदा होती है और बाजारों को बहुत नुकसान पहुंचती है! किसी भी मंद अर्थव्यवस्था में ज्यों – 2 मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाते है तो उत्पादन, रोजगार और मांग में समान वृदि होती है परन्तु कुछ समय के बाद ये सभी समान रूप से वृद्धि नहीं होती तथा अर्थव्यवस्था पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है और समस्या के साथ कीमतों में वृद्धि होने लगती है!

स्फीति का प्रभाव  effect of inflation inflation ka prbhav
स्फीति का प्रभाव  effect of inflation


Inflation is totally a monetary function and its effect every part of our economics (society). Inflation is only be produced by increasing in the quantity of money than output. From different – 2 point of views; some-one has a profit from the inflation or some-one in loss. 

ü  लोन लेने वाला और देने वाला – स्फीति से कर्जदारों को लाभ होता है क्योंकि कर्ज की रकम समान होती है और मुद्रा का मूल्य गिर जाता है तथा वस्तुओं और सेवाओं के रूप में कम देना पड़ता है, दूसरी तरफ, कर्ज देने वाले को हानि होती है मुद्रा की रकम तो उतनी ही मिलती है परन्तु उसका मूल्य गिर जाता है

ü  एक निश्चित वेतन लेने वाले को हानि होती है क्योंकि कीमतों के साथ अपने वेतन को नहीं बढ़ावा-पाते और ऊँची कीमतों के साथ समायोजन करते है

ü  मजदूर – वर्ग को हानि ही होती है यह इस बात पर निर्भर करता है की वो अपनी मजदूरी कों कितना जल्दी अधिक करवा पाते है और बढ़ती कीमतों के साथ समायोजन कर पाते है, मजबूत संग्ठन होने के बाद भी, कीमतों में वृद्धि और मजदूरी में वृद्धि में समय सीमा ( time leg) लगती है 

ü  निवेशक – एक इक्विटी या शेयर धारक को स्फीति के कारण लाभ होता है क्योंकि इन्हें स्थिर दर से ब्याज नहीं मिलता बल्कि कीमतों में वृद्धि से व्यापार को होने वाले लाभ का हिस्सा मिलता है

ü  कृषि करने वाले – इन्हें हम तीन भागों में बाटेंगे –
· जमीदार – इन्हें हानि होती है क्योंकि इन्हें पहले से तय किया गया लगान मिलता है
· भूमि-धर किसान – इन्हें लाभ होता है क्योंकि उत्पादन की लागतों के बजाय उत्पादन की कीमतों में अधिक वृद्धि होती है
· भूमिहीन किसान – इन्हें हानि होती है क्योंकि वस्तुओं की कीमतों में अधिक वृद्धि होती है ना कि मजदूरी में,

ü  व्यापारी – सभी उत्पादकों, व्यापारियों और सम्पदा रखने वालो को स्फीति या कीमतों में वृद्धि से लाभ होता है

ü  सरकार को इससे लाभ और हानि दोनों होती है क्योंकि यह मुख्य कर्ज लेने / देने वाली होती है   


स्फीति को रोकनें के उपाय how to control inflation

स्फीति को रोकनें के उपाय how to control inflation 



किसी भी अर्थव्यवस्था में स्फीति तभी आती है जब समस्त मांग के अनुरूप समस्त पूर्ति नहीं बढ़ पाती, जिसके परिणामस्वरूप स्फीति आती है इसे रोकने के लिए कई प्रकार के कदम उठाए जाते है If you are able to control the money supply only then you are able to bring inflation under-control.  जैसे मोद्रिक, राजकोषीय और अन्य उपाय –


स्फीति को रोकनें के उपाय how to control inflation
स्फीति को रोकनें के उपाय how to control inflation 



ü मोद्रिक उपाय – ये उपाय केवल मांग-जन्य स्फीति को रोकने के लिए ही किए जाते है जैसे –

·  साख नियन्त्रण – बैंक दर बढ़ाना, प्रतिभूतियों का बेचना तथा रिजर्व अनुपात बढ़ाना आदि
·  नई करेंसी बनाना – जब अधिक नोट (करेंसी) जारी किए जा चुके हो, परन्तु इससे छोटे जमाकर्ता को अधिक हानि होती है   
·  करेंसी विमुद्रीकरण  - देश में जब काले-धन की मात्रा अधिक हो,


ü राजकोषीय – किसी भी एक उपाय से स्फीति को नहीं रोका जा सकता, इसके लिए विभिन्न उपाय किए जाते है जैसे –

·   करों को बढ़ाना
·   सरकारी व्यय कम करना
·   बचतों को बढ़ाना
·   बजट में अतिरेक रखना
·  सार्वजनिक लोन लेना और पुनर-भुगतान पर रोक आदि


ü अन्य उपाय –

·  उत्पादन को बढ़ाना
·  कीमत को नियन्त्रण करना
·  राशनिंग करना
·  सही मजदूरी और आय नीति बनाना आदि



05/09/2015

स्फीति के प्रकार types of inflation इन्फ्लेशन ke prkar

स्फीति के प्रकार types of inflation  इन्फ्लेशन ke prkar


मुद्रा की मात्रा को अत्यधिक बढ़ाने के फलस्वरूप कीमतों में होने वाली तेज वृद्धि, यह समस्या अर्थव्यवस्था पर मोद्रिक नियन्त्रण नहीं होने पर पैदा होती है और बाजारों को बहुत नुकसान पहुंचती है! किसी भी मंद अर्थव्यवस्था में ज्यों – 2 मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाते है तो उत्पादन, रोजगार और मांग में समान वृदि होती है परन्तु कुछ समय के बाद ये सभी समान रूप से वृद्धि नहीं होती तथा अर्थव्यवस्था पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है और समस्या के साथ कीमतों में वृद्धि होने लगती है!

स्फीति के प्रकार types of inflation
स्फीति के प्रकार types of inflation  


स्फीति के विभिन्न प्रकार


ü  मांग के कारण  - किसी भी अर्थव्यवस्था में मांग के अनेक कारण हो सकते है जैसे उपभोग, निवेश और सरकार के द्वारा की गई मांग! जब पूर्ण रोजगार के स्तर पर समस्त मांग में वृद्धि होती है तो मांग और पूर्ति में अन्तराल पैदा होता है तो समस्त मांग और समस्त पूर्ति में यह अंतर जो मांग के कारण पैदा होती है इसे ही मांग-जन्य स्फीति ( Demand Pull Inflation ) कहते है!

ü  लागत के कारण – जब स्फीति लागतों में वृद्धि के कारण पैदा होती है तो उसे लागत-जन्य स्फीति कहते है! श्रम की उत्पादकता की अपेक्षा उसकी मजदूरी में अधिक वृद्धि होना ही इस स्फीति का मुख्य कारण है! लागत में वृद्धि के कई कारण हो सकते है जैसे दैनिक मजदूरी अधिक करवाना (Wage-push), अधिक लाभ की इच्छा (profit-push) और अन्य कारणों से ! 

ü  संरचनात्मक स्फीति – एक विकाशील अर्थव्यवस्था में यह स्फीति पैदा होती है जब कृषि में आय से ज्यादा दूसरे क्षेत्र में वृद्धि अधिक होती है तथा जनसंख्या में वृद्धि के कारण भी, प्रारंभिक मांग में वृद्धि होती है, परन्तु पूर्ति बे-लोच होने के कारण आपूर्ति नहीं बड़ा पाते और कीमतों में वृद्धि होती है जिससे संरचनात्मक स्फीति (Structural Inflation) पैदा होती है, इसके अनेक कारण हो सकते है जैसे सिंचाई व्यवस्था का न होना,  वित्त का न होना, सही विपणन और वितरण का न होना और खराब फसलों का होना आदि !

ü  मूल्य बढ़ाव स्फीति – श्रम अपनी निर्वाह लागत से कुछ अधिक मूल्य-बढ़ाव की अपेक्षा करता है तथा एक व्यापारी भी अपनी लागतों के उपर एक लाभ की अपेक्षा करता है इस प्रकार एक आनुपातिक कीमतें (मूल्य बढ़ाव स्फीति या Mark Up Inflation) निश्चित की जाती है!

ü  खुली स्फीति (Open Inflation) – जब बाजार में बिना किसी हस्तक्षेप के वस्तुओं और सेवाओं की कीमते निरधारित होती है या जब बाजार स्वतंत्र के रूप में कार्य करते है तो इसे खुली स्फीति (Open Inflation) कहते है यह पूर्णत बाजार पर निर्भर करती है!

ü  बंद या दमित या निरुद्ध स्फीति (Suppressed Inflation) – जब खुली स्फीति को रोकने के लिए सरकार द्वारा अनेक कार्य किए जाते है जिसे हम बंद या दमित या निरुद्ध स्फीति (Suppressed Inflation) कहते है!


ü  गतिहीन स्फीति ( Stagflation ) – जब अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी या गतिहीनता के साथ – 2 स्फीति की ऊंची दर भी पाई जाती है तो उसे गतिहीन स्फीति ( Stagflation ) कहते है 

स्फीति स्फीति के प्रकार Inflation Types of Inflation

स्फीति Inflation

स्फीति – अपने आप में एक विशाल शब्द है इसका तात्पर्य – मुद्रा की मात्रा को अत्यधिक बढ़ाने के फलस्वरूप कीमतों में होने वाली तेज वृद्धि, यह समस्या अर्थव्यवस्था पर मोद्रिक नियन्त्रण नहीं होने पर पैदा होती है और बाजारों को बहुत नुकसान पहुंचती है!

किसी भी मंद अर्थव्यवस्था में ज्यों – 2 मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाते है तो उत्पादन, रोजगार और मांग में समान वृदि होती है परन्तु कुछ समय के बाद ये सभी समान रूप से वृद्धि नहीं होती तथा अर्थव्यवस्था पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है और समस्या के साथ कीमतों में वृद्धि होने लगती है! यह एक मोद्रिक प्रक्रिया है जो उत्पादन की अपेक्षा केवल मुद्रा में तेज वृद्धि से पैदा होती है! 

Inflation is only be produced by increasing in the quantity of money than output. other words, inflation is increasing the general price level of every goods or services, every units of currency buy less quantity of goods or services.



स्फीति स्फीति के प्रकार Inflation Types of Inflation
स्फीति Inflation


स्फीति के प्रकार Types of Inflation

ü  रेंगती या मंद स्फीति (Creeping Inflation ) – जब कीमतों में वृद्धि बहुत कम दर से होती है तो इसे मंद स्फीति कहते है कम से कम 3 - 4% वृद्धि को इसके अंतर्गत रखा जाता है यह स्फीति किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अति आवश्यक है!

ü  चलती स्फीति ( Walking or Trotting Inflation )– जब कीमतों में वृद्धि 4 – 6% तक होती है तो इसे चलती स्फीति कहते है, या जब कीमत में वृद्धि 8-10% के मध्य होती है तो उसे चलती स्फीति के अंतर्गत रखा जाता है यह किसी भी देश की सरकार के लिए एक अलार्म की तरह होती है !

ü  दोड़ती स्फीति ( Running Inflation )– जब कीमतों में 10-20 % तक की वृद्धि प्रतिवर्ष होती है तो इसे दोड़ती स्फीति कहते है! यह अर्थव्यवस्था के गगरीब और मध्य वर्ग के लिए बहुत ही नुकसान दायक होती है जिसके लिए कई प्रकार के मोद्रिक और फिस्कल उपाय किए जाने की आवश्यता होती है


ü  अति-स्फीति (Hyperinflation ) – जब कीमतों में प्रतिवर्ष 20 – 100 % तक वृद्धि होती हो, तो उसे अति-स्फीति के अंतर्गत रखा जाता है, इसे भागती या दुरत स्फीति ( runaway or galloping inflation )भी कहते है 

मुद्रा बाजार Money Market

मुद्रा बाजार Money Market

यह एक अल्पकालीन बाजार होता है जिसमें हम मुद्रा के स्थान ( निकटतम स्थानापन्न ) पर प्रयोग होने वाली वस्तुओं (अल्पकालीन प्रपत्रों) को रखा जाता है! ये अत्यंत तरल होते है और बिक्री के समय हानि की संभावना भी कम होती है! ये एक वर्ष या उससे कम समय के लिए होते है और इनका प्रयोग भूमि, व्यवसाय, उपभोग और सरकारी आवश्यकताओं के लिए किया जाता है! यह विभिन्न संगठनों को दिया गया एक नाम हँ जो मुद्रा की विभिन्न निकटतम रूपों और श्रेणियों का आदान - प्रदान करते है!

मुद्रा बाजार Money Market
मुद्रा बाजार Money Market


मुद्रा बाजार की विभिन्न संस्था Different institutions of Money Market

ü  केन्द्रीय बैंक (Central Bank) – किसी भी देश का एक केन्द्रीय बैंक होता है और सम्पूर्ण बैंक तंत्र इसके चारों तरफ होता है, यह मुख्य संरक्षक के रूप में कार्य करता है तथा अर्थव्यवस्था के विकास और विस्तार के लिए मुद्रा की आपूर्ति को घटाता और बढ़ाता है यह बाजार को नियन्त्रण करने के लिए बैंक दरों में परिवर्तन और खुले बाजार में निभिन्न प्रचलनों का प्रयोग करता है!

ü  विभिन्न बैंक (Different Bank)– सभी कमर्शियल या व्यापारिक ( Commercial Bank ) बैंक भी अल्पकालीन प्रपत्रों में कार्य करते है तथा विभिन्न प्रकार के व्यवसाय या व्यापार को लोन देते है, ये विनिमय और खजाना बिलों का बट्टा या डिस्काउंट भी करते है!

ü  गैर-बैंक वितीय संस्था (Non-Bank Financial institution) – ये संस्था भी विभिन्न प्रकार के उधार लेने वालोँ को अल्पकालीन उधार देते है इन्हें हम NBFI या NBFC भी कहते है इनमें हम बचत और निवेश बैंक, बीमा कम्पनी, PF और अन्य वितीय संस्थाओँ को शामिल करते है!

ü  बट्टा या डिस्काउंट करना और बिलों का भूनना – ये सभी कार्य विकसित अर्थव्यवस्था के विभिन्न भाग होते है विभिन्न कम्पनी दूसरे के बिलों को डिस्काउंट करती है विकसित अर्थव्यवस्था में बिलों के दलाल भी होते है तथा विभिन्न प्रकार के कमीशन पर उधार लेने और देने वालों के बीच मध्यस्थ का कार्य करते है स्वीकति हाउस ( Acceptance House) भी इसी प्रकार का कार्य करते है!