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11/12/2015
05/12/2015
बाल अधिकार बच्चों के अधिकार
विभिन्न प्रकार के बाल
अधिकार
हमारे संविधान में सभी नागरिकों कों कई प्रकार के अधिकार
प्राप्त होते है 18 साल से कम आयु का प्रत्येक नागरिक बच्चों की श्रेणी में आता है
और बच्चा होने के नाते भी उसे कई अधिकार प्राप्त होते है जैसे –
बाल अधिकार |
ü अनुच्छेद 42 @ अपने अधिकारों के बारे
में जानने का हक
ü अनुच्छेद 2 @ मैं कोंन हूँ मेरे माता
पिता – मेरा धर्म – भाषा क्या है जानने का हक
ü अनुच्छेद 12,13 @ मुझे अपने स्वतंत्र
विचार कहने का हक
ü अनुच्छेद 28 @ बच्चा होने के नाते गलती
करके सिखने का हक
ü अनुच्छेद 23, 28, 29 @ सभी
के लिए अच्छी शिक्षा और अच्छे वातावरण का अधिकार
ü अनुच्छेद 24 @ साफ खाना, पानी और अच्छी
स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त करने का अधिकार
ü अनुच्छेद 31 @ खेल-कूद और आराम का पूरा
अधिकार
ü अनुच्छेद 19 @ अच्छी देखभाल और किसी भी
प्रकार के दुराचार व नुकसान से बचने का अधिकार
ü अनुच्छेद 9, 27 @ पारावारिक सुरक्षा और घर
का अधिकार
ü अनुच्छेद 29,30 @ मुझे अपने मान्यताओं और
विरासत को मानने का अधिकार
ü अनुच्छेद 28, 37 @ किसी भी प्रकार का
शारारिक या मौखिक अत्याचार के खिलाफ अधिकार
ü अनुच्छेद 32, 34, 36 @
आर्थिक और किसी भी प्रकार के यौन शोषण के खिलाफ अधिकार
कानून और सामाजिक न्याय samajik nyay or hmara kanun
कानून और सामाजिक न्याय
सामाजिक
न्याय और कानून एक गहरा रिश्ता होता है जैसे सभी के लिए समान आगे बढ़ने के अवसर
होगें और यदि ऐसा नहीं होता है तो इस प्रकार के कानून का निर्माण किया जाए ताकि
सभी के आगे बढ़ने के समान अवसर मिल सकें और सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिल सकें! कई
बार कम्पनियां मजदूरों को कम मजदूरी देते है या नहीं भी परन्तु एक कानून का
निर्माण किया गया है जिसकें माध्यम से यह व्यवस्था की गई है की सभी को एक न्यूनतम
वेतन मिलना चाहिए और एक निश्चित समय के बाद उस में वृद्धि भी होनी चाहिए! इसीलिए
समाज में शोषण को रोकने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार के
कानूनों का सहारा लेने अति आवश्यक हो जाता है! मौलिक अधिकारों की रक्षा और सामाजिक
न्याय को बढ़ावा देने के लिए कानूनों का निर्माण करना और उनका पालन करना और जो लोग
उनका पालन नहीं कर रहें हो उन पर उचित कार्यवाही करना सरकार की ज़िमेदारी बन जाती
है
कानून और सामाजिक न्याय |
विभिन्न सुरक्षा के कानूनों पालन – किसी
भी कानून का केवल बना देना ही काफी नहीं होता बल्कि उसको उचित प्रकार से लागू करना
भी अति आवश्यक होता है तभी हम सामाजिक न्याय को बढ़ावा दे सकते है! उदहारण के लिए
मान लेते है की मजदूरों को कम मजदूरी दी जा रही है तो सरकार अपनी विभिन्न संस्थाओं
के माध्यम से निरीक्षण करा सकता है उचित कार्यवाही कर सकती है!
काम करते
समय सुरक्षा के कानूनों का पालन करना भी अति आवश्यक होता है जैसे कारखानों में
उचित सुरक्षा के उपकरणों का होना और उचित प्रकार से साफ हवा का होना आदि! यदि हम
अपने कारखानों में उचित सुरक्षा के उपकरणों का पालन करते है तो हम कारखानों में
होने वाले विभिन्न हादसों को भी रोक सकते थे! जैसे भोपाल के महाविनाश में हमनें
देखा की सुरक्षा के उपकरणों की अनदेखी की गई थी जिससे हमारे देश को कितना बढ़ा
नुकसान उठाना पड़ा! यदि हम अपने सुरक्षा के उपकरणों पर ज्यादा ध्यान देते है तो
इससे हम अपने मजदूरों की कीमत को समझ सकते है यह अलग बात है की भारत में सस्ता
श्रम है और एक मजदूर की स्थान पर दूसरा हमे आसानी से मिल जाता है और पहले से सस्ता
भी! परन्तु हमे अपने मजदूरों की सुरक्षा के साथ नहीं खेलना चाहिए और सुरक्षा के
मानकों का पूरी तरह पालन करना चाहिए जैसे की विदेशों में होता है!
पर्यावरण की रक्षा –
पहले इस
प्रकार के कानून कम और उनको लागू करने का प्रबंध भी बहुत ही कमजोर होता था कारखाने
हमारे वातावरण को दूषित करते रहते थे और हवा और पानी के स्रोतों को भी दूषित करते
रहते थे! परन्तु पिछलें समय में हुई कई कारखानों की दुर्घटनाओं ने इस तरफ ध्यान
आकर्षित किया है! सुरक्षा मानकों में ढील के कारण ही कारखानों को फायदा मिलता और
उन्हें प्रदूषण के लिए और उसे रोकने के लिए भी खर्च नहीं करना पड़ता था! जैसे की
भोपाल में यूनियन कार्बाइड को मिला और हमारी कमजोरियों और उस के परिणामों को भी हम
देख चुकें है!
इसीलिए
हम कह सकते है की पर्यावरण की रक्षा और सुरक्षा के उपकरणों के साथ हमे खिलवाड़ नहीं
करना चाहिए!
जनसुविधाएँ जनसुविधा मूलभूत जनसुविधाएँ
जनसुविधाएँ
जनसुविधाओं
से अभिप्राय उन सभी मूलभूत सुविधाओं से है जो लोगों को जीने के लिए चहिए जैसे
स्व्च्छता, पानी, बिजली, सार्वजनिक परिवहन और स्कूल आदि! ये जनसुविधाएँ
हमारे जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक होती है इन के बिना जीवन बहुत ही कठिन हो जाता
है! उदहारण के लिए पानी को लेते है साफ पानी की उपलब्धता सभी के लिए होना अति-आवश्यक
है यदि साफ पानी नहीं मिलता तो लोगों में बहुत सी बीमारियाँ फैलने का डर होता है
जैसे दस्त, पेचिसी और हैजा आदि! पानी से सम्बंधित बीमारियों के कारण भारत में
1600 लोग हर रोज मरते है और इनमें ज्यादातर बच्चे होते है जिस देश में जन सुविधाओं
की पहुँच अधिक लोगों तक होगी वह पर लोगों के अंदर बिमारियां भी कम होती है और
म्रत्यु दर भी कम होती है
जनसुविधाएँ |
जन सुविधाओं
की एक विशेषता यह होती है की एक बार बनने पर इसकी पहुँच बहुत अधिक लोगों तक और
इनका प्रयोग भी अधिक समय तक किया जा सकता है! जैसे स्कूल बनने से कितने अधिक
बच्चों को इसका फायदा होता है! गाँव में बिजली आने से लोग खेंतो के लिए पम्प सेट
चला सकते है! बच्चों के पढनें में आसानी और लोग अपने काम करने के लिए वर्कशाप खोल
सकते है!
जनसुविधाओं में सरकार की भूमिका –
सभी प्रकार की
जन सुविधाओं का दायरा बहुत अधिक होता है इसीलिए इन को बिना ज़िमेदारी के नहीं छोड़ा
जा सकता! जन सुविधाएं इतनी अधिक महत्वपूर्ण होती है की सरकार ही इनको पूरा करने
की ज़िमेदारी अपने उपर लेती है ताकि बिना किसी भेदभाव के सभी को इन सुविधाओं की
उपलब्धता कराई जा सकें! जैसे स्कूल और अस्पताल - यदि इन जिम्मेदारियों को
कम्पनियों के लिए छोड़ दिया जाए तो ये कम्पनियां अपनी निजी हित के लिए काम कर सकती
और विभिन्न लोगों के मध्य भेदभाव कर सकती है और मन-माने ढंग से पैसे उसूल कर सकती
है और यह देश के नागरिकों के मुलभुत अधिकारों का हनन होगा!
सरकार बजट के माध्यम से अपने खर्च और आय को बताती है और पिछलें साल क्या खर्च किया और आने वाले समय
में क्या खर्च होना है यह सब बजट के माध्यम से बताती है सरकार की मुख्य आय जनता
से होने वाली करों की प्राप्ति है और इस पैसे को जनता की भलाई या जनसुविधओं के
विस्तार पर खर्च करने का सरकार की पास पूरा अधिकार होता है
27/11/2015
हमारी अपराधिक न्याय प्रणाली न्याय प्रणाली
हमारी अपराधिक न्याय प्रणाली
हम सभी
जानते है की कोंई भी अपराध होने पर पुलिस कई लोगों को गिरफ्तार करती है तो ऐसा
लगता है की मानों पुलिस ही न्याय करती है परन्तु ऐसा नहीं है गिरफ्तार होने के बाद
अदालत तय करती है की आरोपी दोषी है की नहीं ! निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार भी सभी
नागरिकों को होता है!
हमारी न्याय प्रणाली |
ü पुलिस की भूमिका – अपराध की जाँच में पुलिस
एक महत्वपूर्ण अंग होती है किसी भी शिकायत की जाँच करना – गवाहों के बयान – सबूत
इकट्ठा करना और फिर अदालत में आरोपपत्र/चार्जशीट दाखिल करना! पुलिस हमेशा से ही कानून के अंदर काम करती है और गिरफ्तारी,
हिरासत और पूछताछ के लिए सर्वोच्च न्यायालय के नियमों का पालन करती है संविधान में
यह जानने का हक है की -
· गिरफ्तारी का कारण क्या है
· गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना
· गिरफ्तारी के बाद दिया गया
बयान सबूत नहीं हो सकता
· गिरफ्तारी पर
यातना/दुर्व्यवहार से बचने का अधिकार
· किसी महिला या बच्चे (15 साल
से कम) को केवल सवाल पूछने के लिए नहीं लाया जा सकता
ü सरकारी वकील की भूमिका – किसी भी अपराध को केवल पीड़ित के विरुद्ध नहीं बल्कि पुरे
समाज के विरुद्ध माना जाता है और समाज में शांति हो यह राज्य का काम होता है इस
लिए राज्य सरकारी वकील उपलब्ध करता है ताकि सभी सबूत और गवाह सही से पेश किए जा
सकें और न्यायालय सही फैसला दे सकें !
ü न्यायाधीश की भूमिका – न्यायाधीश की भूमिका निष्पक्ष होती है और वह दोनों तरफ
के बयान और दलीलें सुनने के बाद ही फैसला करता है की आरोपी दोषी है या नहीं !
निष्पक्ष सुनवाई से अभिप्राय सभी को अपना पक्ष रखने का पूरा – 2 समय दिया जा सकें
और सभी सबूतों के आधार पर सही फैसला लेना ताकि न्याय हो!
न्यायपालिका हमारी न्यायपालिका हमारी अदालतें
न्यायपालिका हमारी
न्यायपालिका हमारी अदालतें
न्यायपालिका
एक प्रकार की व्यवस्था होती है जो सभी के लिए समान कानून लागू करने में अहम भूमिका
अदा करती है न्यायपालिका भारतीय संविधान या लोकतंत्र की व्यवस्था बनाए रखने में
अहम भूमिका अदा करता है! न्याय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बहुत सारी अदालतें
होती है जहाँ पर नागरिक न्याय पाने के लिए जा सकता है! न्यायपालिका का स्वतंत्र
होना ही इसके महत्व को बताता है अर्थात् हमारे देश में एक स्वतंत्र न्याय व्यवस्था
है! न्यायपालिका के कामों कों निम्न भागों में बाँटा जा सकता है जैसे –
हमारी न्यायपालिका |
· विवादों का हल – देश के
नागरिकों और विभिन्न राज्यों की सरकारों या केंद्र सरकार के विवादों का हल करना !
· न्यायिक समीक्षा – संविधान
की व्याख्या का मुख्य अधिकार न्यायपालिका के पास है यदि न्याय पालिका को लगता है
की संसद द्वारा बनाया गया कानून संविधान का उल्लंघन है तो न्यायपालिका उस कानून को
रद्द क्र सकती है!
· कानून की रक्षा करना और
नागरिकों के मोलिक अधिकारों की रक्षा करना
स्वतंत्र न्यायपालिका – किसी भी देश में न्याय व्यवस्था का स्वतंत्र होना अति
आवश्यक होता है एक स्वतंत्र न्याय पालिका ही देश में समान कानून व्यवस्था और सभी
के लिए समान न्याय की व्यवस्था क्र सकता है! उदाहरण के लिए यदि हम यह मान लेते है
की आप की जमीन पर कोंई व्यक्ति कब्ज़ा कर लेता है और उसी का जानकर यदि न्याय करने
वाला है तो वह अपने जानकर का ही बचाव करेगा तथा उसका निर्णय आप के विरोध में होगा
! परन्तु यह सही न्याय नहीं है इसीलिए न्याय व्यवस्था का स्वतंत्र होना अति आवश्यक
है ताकि सभी के लिए समान न्याय की व्यवस्था की जा सकें और नागरिकों के अधिकारों की
रक्षा की जा सकें!
भारत में
अदालतों की ढ़ाचा – हमारे देश में अदालतें तीन स्तरों पर काम करती है जिला
अदालतें जो निचलें स्तरों पर काम करती है और प्रत्येक जिले के साथ होती है दूसरा
स्तर – प्रत्येक राज्य कई जिलों में बट्टा होता है इसीलिए प्रत्येक राज्य का
एक उच्च न्यायालय होता है जो राज्य स्तर पर सबसे उच्च होता है तीसरा स्तर –
इन सभी उच्च न्यायालयों के उपर एक सर्वोच्च न्यायालय होता है यह देश की सबसे बड़ी
अदालत होती है और इसका फसला सभी अदालते पर समान रूप से लागू होता है यह दिल्ली में
स्थित है और मुख्य न्यायाधीश इसका मुखिया होता है! हमारी सभी अदालतें एक दूसरे से
जुड़ी हुई है और कोंई भी नागरिक यदि निचली अदालत के फ़ैसले से सहमत नहीं है वह उच्च
अदालत में अपील कर सकता है सभी व्यक्ति समान रूप से न्यायालय की शरण में जा सकते
है!
24/11/2015
हमारा कानून कानून की समझ
हमारा कानून या कानून की
समझ
स्वतंत्रता
के लिए संघर्ष कर रहें सभी राष्ट्रवादी लोग इस बात पर एक मत थे की स्वतंत्रता के
पश्चात पुरे देश में एक समान कानून लागू होना चाहिए! इस लिए हमारे सविंधान
में कई प्रावधान दिए गए है जिससे पुरे देश में कानून का राज स्थापित किया जा सकें!
हमारे कानून में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर जनता के साथ
भेदभाव नहीं किया जाता! कानून की नजर में सभी लोग
समान होते है और हमारा कानून सभी पर बराबर से लागू होता है कानून से उपर कोंई नहीं
होता चाहे वह सरकार हो या साधारण नागरिक! कानून के राज में एक अपराध की सभी के समान
सजा और एक निश्चित प्रकिया होती है जो सभी पर समान रूप से लागू होती है! पुराने
जमाने में कानून को अलग – 2 तरह से प्रयोग किया जाता था जैसे अमीर और गरीब की सजा
भी एक अपराध के लिए अलग – 2 होती थी! परन्तु अंग्रेजों के शासन में यह अंतर कम हुआ
और कानून के राज की स्थापना का प्रारम्भ हुआ!
हमारा कानून |
हमारे
देश में कानून की स्थापना अंग्रेजों न की या राष्ट्रवादी लोगों के दबाव में, यह बहस मुद्दा हो सकता है 1870 का राजद्रोह
एक्ट अंग्रेजों के मनमाने शासन का नतीजा था जिसमे आलोचना या विरोध करने पर ही जेल
में डाल किया जाता था परन्तु राष्ट्रवादी लोगों ने समानता का संघर्ष शुरू किया
जाता है
19वीं
सदी के अंत तक भारत में भी कानून की समझ का विस्तार हुआ और कानूनों के जानकर लोगों
ने समानता के अधिकार की मांग रखी, कानूनों के जानकर भी अपने अधिकारों की रक्षा
करने लगे और न्यायालयों में भी भारतीयों की भूमिका का विस्तार हुआ!
कानून बनाना – कानून बनाने का
अधिकार हमारी संसद के पास है जिसमे हमारे चुने हुए प्रतिनिधि समाज की आवश्कता
के अनुसार कानून का निर्माण करते है जैसे घरेलू हिंसा या दहेज उत्पीड़न आदि! और
लोगों द्वारा अप्रिय कानूनों का विरोध भी किया जाता है सभा और अखबारों में लेख भी
लिखे जा सकते है
18/11/2015
हमें संसद की आवश्यकता क्यों है हमें संसद क्यों चहिए
हमें संसद की आवश्यकता क्यों है या हमें संसद क्यों चहिए ?
संसद किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक
महत्वपूर्ण भाग होता है, संसद के माध्यम से ही हम सहभागिता और लोकतांत्रिक सरकार
में नागरिकों की सहमति को समझ सकते है और संसद के महत्व के कारण ही भारत में एक
लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण किया गया है, इसके माध्यम से ही सरकार का निर्माण
और इसके काम पर अंकुश रखने ( विपक्ष के माध्यम से ) में नागरिकों की भूमिका को
बताया गया है! अपनी विशेषताओं के कारण ही संसद - भारतीय संविधान और लोकतंत्र का
केन्द्रीय बिंदु है
हम सब जानते है की आज़ादी से पहले (15
अगस्त 1947) हम पर अंग्रेजों का राज था और सभी निर्णय अंग्रेजों के द्वारा लिए
जाते थे भारतीयों की हिस्सेदारी ना के बराबर थी स्वतंत्रता के लिए किए जा रहें
आन्दोलनों ने इस स्थिति को काफी बदला और कुछ राष्ट्रवादीयों द्वारा खुले-आम अंग्रेज
सरकार की आलोचना करनी शुरु कर दी और अपनी मांग रखने लगे! सन 1885 में भारतीय
राष्टीय कांग्रेस ने विधायिका में निर्वाचित सदस्य, बजट पर चर्चा और प्रश्न करने
का अधिकारों का मांग की! सन 1909 में बनाएं गए गवर्नमेंट आँफ़ इंडिया एक्ट में सदस्यों
के निर्वाचन की व्यवस्था की गई परन्तु उन्हें भी वोट और निर्णय का अधिकार नहीं था
हमें संसद क्यों चहिए |
लोगों का संसद में
प्रतिनिधित्व –
स्वतंत्र देश के लोग अपने निर्णय अपने आप
ले सकते है और वोट के माध्यम से अपनी सरकार का चुनाव कर सकते है निर्वाचित सदस्यों
के समूह को संसद कहते है और निर्वाचित सदस्यों के बड़े समूह के द्वारा ही सरकार का
निर्माण किया जाता है जो लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय ले सकें! निर्वाचित
सदस्य विभिन्न दलों के हो सकते है! सरकार आम सहमती के आधार पर निर्णय लेती है
क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण नागरिक या व्यक्ति होता है संसद
का महत्व या भूमिका इस सिद्धांत पर आधरित है की जनता की निर्णय प्रक्रिया में
हिस्सेदारी और सहमती के आधार पर शासन!
- सरकार का चुनाव – संसद के तीन
अंग होते है जैसे राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा! लोकसभा के लिए चुनाव 5 साल
में एक बार कराया जाता है और निर्वाचित सदस्यों में से बहुमत वाले दल को ही
सरकार बनाने का अधिकार होता है हमारी लोकसभा में 543 निर्वाचित सदस्यों और 2
मनोनीत सदस्य होता है जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते है सरकार से अलग निर्वाचित
सदस्यों को विपक्ष कहा जाता है प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है और वह
विभिन्न क्षेत्रो के लिए अपने मंत्री नियुक्त करता है राज्यसभा में 233
सदस्यों का चुनाव विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं सदस्यों के द्वारा किया जाता
है और 12 सदस्यों का राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है
किसी कानून के लिए
आवश्यक है की वो लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास हो तभी वह लागू होता है दोनों
सदनों में से कोंई भी नए कानून बनाने का प्रस्ताव दे सकता है परन्तु वह दोनों
सदनों में पास होना आवश्यक है
संसद सत्र के
अंतर्गत - प्रश्नकाल एक महत्वपूर्ण व्यवस्था होती है जिसमें सरकार से विपक्ष विभिन्न
प्रश्न करता है और सरकार उनका उत्तर देती है सरकार द्वारा किए जा रहें कार्यो की
जानकारी भी विपक्ष को देती है संसद में सभी की हिस्सेदारी हो इसके लिए कुछ सीटों
को SC और ST के लिए आरक्षित रखा जाता है ताकि समाज के सभी वर्गो की भूमिका को संसद
के अंतर्गत सुनिश्चित किया जा सकें!
16/11/2015
धर्मनिरपेक्षता secularism
धर्मनिरपेक्षता
धर्मनिरपेक्षता
से हमारा अभिप्राय राज्य द्वारा किसी भी धर्म को प्रोत्साहन न देना है, यह राज्य
का दायित्व होता है की वह सभी को समान समझें और सभी को समान अधिकार दें! लेकिन
पूर्व में और वर्तमान में भी बहुत से उदहारण मिलते है जब बहुसंख्यक ने अल्पसंख्यक
को दबाया और अपनी निरंकुशता से उन्हें अपने विचार व्यक्त नहीं करने दिया गया!
धर्मनिरपेक्षता secularism |
धर्मनिरपेक्षता
के अंतर्गत अभी को अपने विचार व्यक्त करने और अपनी धार्मिक मान्यताओं तथा तोर –
तरीकों को अपनाने की पूरी आजादी देता है ताकि सभी अपने रीति-रिवाजों को स्वतंत्रता
के साथ मना सकें! भारतीय संविधान में सभी को आजादी से जीने और अपनी स्वतंत्रता
बनाए रखना का पूरा अधिकार दिया गया है! भारत के संविधान के अनुसार राज्य सरकार
किसी भी धर्म को अधिक बढ़ावा नहीं देगी और समाज के सभी वर्गो को उनकी मान्यताओं को
मानने का पूरा अधिकार देगी,
धर्म और राज्य अलग – 2
क्यों होने चहिए –
धर्म और
राज्य दोनों ही अलग – 2 विषय है क्योंकि लोगों को अपनी अलग – 2 धार्मिक पहचान
बनाने का पूरा अधिकार है और राज्य सरकार इसमें कोंई हस्तक्षेप नहीं करेगीं, इसका
अर्थ यह है की लोग कोंई भी धर्म अपना सकतें है और एक धर्म को छोड़कर कोई दूसरा धर्म
भी अपना सकता है और धर्म को अलग ढंग से व्याख्या करने की स्वतन्त्र होता है
धर्मनिरपेक्षता के अंदर निम्न बातोँ का ध्यान रखना होता है जैसे –
ü
एक धर्म को मानने वाले
दूसरे धर्म के साथ जोर – जबरदस्ती नहीं करेगें
ü
एक ही धर्म के अंदर भी
विभिन्न मान्यताओं के लोग हो सकते है जो एक दूसरे को दबाएँ नहीं जैसे – ऊँची जीति
द्वारा निचली जाति को दबाना आदि
ü
राज्य सरकार किसी भी एक
धर्म को बढ़ावा नहीं देगी और दूसरों की स्वंत्रता का ख्याल रखेगीं
25/09/2015
भारतीय संविधान indian constitution
भारतीय संविधान
आज जिस
आजाद संसार में हम साँस ले रहें है वहा पर कुछ समय पहले तक कुछ चुनिंदा देशों का
ही शासन होता था और ये कुछ देश ही संसार पर राज करते थे और अपने द्वारा बनाए गए
कानूनों के थोपते थे परन्तु आज दुनिया का सभी देश आजाद है और उनके पास उन्हीं के
द्वारा बनाया गया कानून है आज दुनिया के सभी देशों का अपना संविधान है परन्तु वे
लोकतांत्रिक है ये नहीं कहा जा सकता!
भारतीय संविधान indian constitution |
संविधान है क्या और यह किस उदेश्य (महत्व) के लिए बनाया
जाता है – यह एक आदर्शो की एक सांझी सहमती होती है जो
पुरे देश पर एक समान लागू होती है! ये वे आदर्शो होते है जिस प्रकार का देश की
जनता अपने देश को बनाना चाहतीं है यह समाज के ताने-बाने या ढ़ाचे का मूल स्वरूप
होता है किसी भी देश के अंदर विभिन्न समुदाय – विभिन्न धर्म – विभिन्न भाषा हो
सकती है या होती है जिनमें कुछ समानता और कुछ असमानता होती है इसीलिए संविधान एक
इस प्रकार की विधि होती है जो सभी को एक समान चलने को प्रेरित करती है!
लोकतांत्रिक
व्यवस्था में हम अपने नेता को खुद या स्वयं चुनते है ताकि वे जनता के प्रति अपनी
जिम्मेदारी को सही तरीके से पूरा कर सके! फिर भी कुछ लोग इन शक्तियों का गलत प्रयोग
करते है जिससे समाज को काफी नुकसान होता है परन्तु हमारे संविधान में इनसे निपटने
के लिए भी व्यवस्था की गई है जिन्हें हम मोलिक अधिकार कहते है समानता का अधिकार भी
इसी के अंदर आता है जिसमेँ जन्म – जाति – धर्म – भाषा आदि के आधार पर अंतर नहीं
किया जा सकता है बहुसंख्यक द्वारा अल्पसंख्यक को दबानें की स्थिति में भी संविधान
इस निरंकुशता का समाधान करता है
संविधान
हमे इस प्रकार के निर्णय लेने से रोकता है जिसके कारण संविधान के आधार-भूत ढ़ाचे को
नुकसान होता हो, जो कई प्रकार की आछी या घटियाँ किस्म की राजनीति के कारण होता है
संविधान के लक्षण –
जिस
देश में विभिन्न समुदाय – विभिन्न धर्म – विभिन्न भाषा आदि हो वहा पर कोंई एक आदमी
सभी के लिए संविधान का निर्माण नहीं कर सकता! 1946 में लगभग 250 – 300 लोगों से
मिलकर एक संविधान सभा का गठन किया गया जिन्होंने आगे चलकर हमारे संविधान का
निर्माण किया!
ü
संघवाद – इस से अभी-प्राय देश में एक से ज्यादा स्तरों पर सरकारों
का होना है ताकि कुछ लोग पुरे देश के बारे में फैसला न ले सकें, इसीलिए केंद्र
सरकार – राज्य सरकार – पंचायत राज की व्यवस्था की गई है सभी को अलग – 2 अधिकार और
दायित्व दिए गए है सभी की सहमती से फैसला लिया जा सकें
ü
संसदीय प्रणाली – इस के अंतर्गत लोग अपनी वोट देकर सरकार का चयन करते है
और सभी को समान रूप से वोट देने का अधिकार है अर्थात जन्म – जाति – धर्म – भाषा
आदि के आधार पर अंतर नहीं कोई भी है
ü
शक्तियों का वितरण – किसी भी शासन व्यवस्था को तीन भागों में बांटा जा सकता
है जैसे – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका! संविधान में इन तीनों की
शक्तियों का वितरण किया गया है ताकि भविष्य के टकराव को रोंका जा सकें! कार्यपालिका
– शासन चलाना और कानूनों को लागू करना, विधायिका – लोगों द्वारा चुने प्रतिनिधि जो
सरकार चलते है, न्यायपालिका – जो न्याय की व्यवस्था बिना किसी भेदभाव के समान रूप
से सभी के लिए करती है!
ü
मोलिक अधिकार – ये वे अधिकार है जो जनता को राज्य या विधायिका के
मन मानेपन या निरंकुशता से बचते है ये अधिकार अल्पसंख्यक के लिए भी हो सकते है या
आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए भी या महिलाओं और बच्चों के लिए भी! इसमें नीति
- निर्देशक तत्वों को भी जोड़ा गया है ताकि भविष्य में सामाजिक सुधारों को बढ़ाया जा
सकें और मार्गदर्शक के रूप में इनका विस्तार किया जा सकें!
ü धर्मनिरपेक्ष – किसी भी देश के संविधान
का धर्मनिरपेक्ष होना अति-आवश्यक होता है अर्थात किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देगी
और सभी को समानता से देखा जाएगा!
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